ये तन विष की बेल री
ये तन विष की बेल री, 
गुरू अमृत की खान । 

            शीष दिये जो गुरू मिलै, 
           तो भी सस्ता जान ।।

              गुरू बिन दाता कोइ नहीं, 
           जग माँगन हारा। 

           तीन लोक ब्रहमांड में, 
           सब के भरतारा।।

सात समंदर मसि करौ, 
लेखन सब वनराय। 

धरती सब कागद करौ, 
गुरू गुन लिखा न जाय।।

कहै कबीर जाकै मस्तकी भाग। 
सभ परिहरि ताकौं मिलै सुहाग।।

- कबीर दास जी ।