जगन्माता का गीत
हे भक्त, दे सकती तुझे मैं मुक्ति पर प्रेम नहीं न भक्ति। क्योंकि जब इनको दे देती हूँ तो स्वयं को दे देती हूँ। मांग ले मुझसे मुक्ति पर प्रेम नहीं न भक्ति। क्योंकि तब निश्चय ही इन्हें दान कर, निर्धन मैं बन जाती हूँ, बन्दी तेरी चाहों की। - श्री श्री परमहंस योगानंद जी ।