अनगढ़ माटी मैं हूँ गुरु तुम कुशल कुम्हार
अनगढ़ माटी मैं हूँ गुरु तुम कुशल कुम्हार, अपने जैसा ही गढ़ों माटी से आकार। मैं छोटी सी नाव हूँ गुरु तुम खेवनहार, इसी जन्म में ले चलो भवसागर से पार।। स्थूल शब्द मैं हूँ गुरु तुम सूक्ष्म विचार, अपने जैसा ढाल दो वाणी मैं उदगार। मैं हूँ पाती प्रेम की गुरु तुम प्रेमावतार, इस जीवन में बांच कर हर लो विषय विकार।। मूढ़मति अज्ञानी मैं गुरु तुम ज्ञानवतार, मेटो तम अज्ञान का मन में हो उजियार। मैं मैं करता मैं फिरूँ गुरु तुम योगवतार, मेटो मन से मोह मद काम क्रोध अहंकार।। तुच्छ से एक जीव मैं गुरु तुम महावतार, चरण शरण में आया हूँ कर दो बेड़ा पार। गुरु तुन पूरण सत्य हो तुम ही हो करतार, मुझको भी पूरण करो करते एकाकार।। - योगदन्स।