केशवा माधवा त्रिपुरारी
केशवा माधवा त्रिपुरारी, मन को मेरे मोह गया गिरिधारी, कुंज गलियों का वो कुंज बिहारी, श्यामल वर्ण मेरा कृष्ण मुरारी। हर पल रिझाये उसकी चंचल चितवन, मन मेरा झूमे कैसी मिलन लगन, चैन मेरा ले गयी जिसकी छवि, ढूंढती फिरूँ मैं गली गली। मीठी सी हंसी मेरा मन बहकाये, बाँसुरिया बजाके चैन चुराए, बांकी अदा पे जाऊं मैं बलिहारी, कण कण में रचता बसता है बनवारी। - योगदन्स ।