काशी नज़र आती है
काशी नज़र आती है,
न काबा नज़र आता है,
हर सिम्त मुझे तेरा,
जलवा नज़र आता है।
 
बख्शी है मुझे तूने,
वो शौक ए नज़र मौला,
हर शख्स मुहब्बत का,
गहवारा नज़र आता है।
 
रहमत से तूने अपनी,
मुझे इतना नवाज़ा है,
शिकायत नही है कोई न,
शिकवा नज़र आता है।
 
पारा कुरान का हो,
या, अध्याय हो, गीता का,
पैगाम ए मोहब्बत का,
इशारा नज़र आता है।
 
- योगदन्स ।