सत्य नाम का सुमिरन कर ले
सत्य नाम का सुमिरन कर ले, कल जाने क्या होय। जाग जाग नर निज आश्रम में, काहे बिरथा सोय। जे ही कारण तू जग में आया, वो नहीं तूने कर्म कमाया। मन मैला का मैला तेरा, काया मल मल धोय। दो दिनों का है रैन बसेरा, कौन है मेरा कौन है तेरा। हुआ सवेरा चले मुसाफिर, अब क्या नयन भिगोए। मन में जगा ले तू शबद गुरु के, चौरासी से छूटे क्षण में। ये तन बार बार नहीं पावे, शुभ अवसर क्यों खोय। ये दुनिया है एक अजब तमाशा, कर नही बंदे इसकी आशा। कहैं कबीर सुनो भई साधो, साईं भज सुख होय। - कबीर दास जी ।