लाग गयी फिर लाज काहे री
लाग गयी फिर लाज काहे री,

जो दृग लागे श्याम सुंदर से ,

औरण सों फिर काज काहे री।




लाग गयी फिर लाज काहे री,

भर भर पीए प्रेम रस प्याले,

औंछे अमल को स्वाद काहे री।







लाग गयी फिर लाज काहे री,

बृज निधि बृज रस चाखण चाहत ,

या सुख आगे राज काहे री।




- योगदन्स