मैं तोरी दासी तुम मेरे स्वामी 
मैं तोरी दासी तुम मेरे स्वामी,

पूजा करूँ मैं सदा तुम्हारी ।

नदिया बहे मिलने पिया से,

समंदर में खो जाए खुद ही सारी,

हां इस तरह से बनूँ तुम्हारी ।




मैं तोरी दासी तुम मेरे स्वामी,

पूजा करूँ मैं सदा तुम्हारी।

सूरज को निहारे जैसे,

सूरजमुखी सदा ,

हां इस तरह से चाहत हमारी।




मैं तोरी दासी तुम मेरे स्वामी ,

पूजा करूँ मैं सदा तुम्हारी ।

सावन को तरसे सूखी माटी जैसे,

हां इस तरह से तृष्णा हमारी,

अमृत की प्यासी भक्त तुम्हारी।

- योगदन्स