योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के संस्थापक एवं विश्व प्रसिद्ध पुस्तक योगी कथामृत के रचयिता श्री श्री परमहंस योगानन्द जी का नाम बीसवीं सदी के उन उत्कृष्ट अध्यात्मिक संतो में से प्रमुख है जिन्होंने अपने प्रेरणादायक जीवन व अध्यात्मिक ज्ञान से संपूर्ण विश्व के समक्ष भारत भूमि को गौरवान्वित किया है।
परमहंस जी ने विश्व भर के अध्यात्मिक जिज्ञासूओं को ध्यान व क्रियायोग का परिचय प्रदान कर उनकी आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है।
परमहंस जी द्वारा प्रसारित क्रिया योग की शिक्षाओं का अनुसरण कर असंख्य आत्माएं अपने जीवन में शांति, प्रेम व आनंद की अनुभूति प्राप्त कर समस्त विश्व को आंतरिक सामंजस्यता व आध्यात्मिक समरसता की ओर प्रेरित करने में सहायता प्रदान कर रही हैं।
परमहंस जी का अध्यात्मिक संदेश वैश्विक रूप से विस्तारित होते हुए दिन प्रतिदिन अपनी प्रासंगिकता प्रमाणित कर रहा है।
श्री श्री परमहंस योगानन्द जी (पारिवारिक नाम मुकुंद लाल घोष) का जन्म भारतवर्ष के महान संत गोरखनाथ जी के चरण रज से पावन गोरखपुर की पवित्र धरती पर 5 जनवरी 1893 को हुआ था । विलक्षण प्रतिभा के धनी परमहंस जी के बाल्यकाल में ही उनकी आध्यात्मिक पीपासा, ईशनिष्ठा के विशेष गुणों द्वारा उनके वैश्विक अभियान का बोध होने लगा था। सन् 1915 में कोलकाता विश्वविद्यालय द्वारा स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात अपने गुरु स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरी जी द्वारा विधिवत सन्यास दीक्षा ग्रहण करने पर उनके समक्ष अपने लिए एक नये नाम को चयनित करने का प्रस्ताव रखा गया और मुकुंद लाल घोष ने अपना नया नाम योगानन्द (ईश्वर के मिलन योग द्वारा आनन्द) का चयन किया। इस प्रकार उन्हे सन्यास के उपरांत योगानन्द का नाम प्राप्त हुआ ।
“इसे याद रखो जो मनुष्य अपने सांसारिक कर्तव्यों को त्याग देता है वह अपने उस त्याग को तभी उचित सिद्ध कर सकता है जब उससे कहीं अधिक वृहद परिवार का कोई उत्तरदायित्व स्वीकार करता है।”
उपर्युक्त उपदेश के साथ उन्हें स्वामी श्री श्री युक्तेश्वर गिरी जी द्वारा संस्थागत उत्तरदायित्व का निर्वाह करने हेतु प्रेरित किया गया।
अपने गुरुदेव की प्रेरणा व आज्ञा से योगानंद जी ने 1917 में तत्कालिक बंगाल के दीहिका ग्राम में 7 बालकों के साथ अपना प्रथम योग विद्यालय स्थापित किया। सन 1918 में कासिम बाजार के महाराजा श्री मनिंद्र चंद्र नंदी जी को जब योगानंद जी के इस धार्मिक उद्देश्य का ज्ञान हुआ तो रांची में स्थित (तत्कालिक बिहार) में उन्होंने अपना महल व 25 एकड़ भूमि इस आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु उपलब्ध करवा दी और इस प्रकार योगानंद जी ने दीहिका में स्थापित अपने प्रथम योग विद्यालय को रांची में स्थानांतरित किया जो वर्तमान में संपूर्ण विश्व में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के नाम से प्रख्यात और भारत व एशिया के अध्यात्मिक पिपासुओं को सत्य की खोज में मार्गदर्शन प्रदान कर रहा है ।
परमहंस योगानन्द जी द्वारा स्थापित योगदा सत्संग विद्यालय के पाठ्यक्रम प्रणाली में हाई स्कूल के मानक विषयों के साथ राजयोग द्वारा एकाग्रता व योगदा शक्ति संचार व्यायाम की पद्धति को भी सम्मिलित किया गया है । हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी व अन्य सुप्रसिद्ध विभूतियों ने इस अद्वितीय विद्यालय का व्यक्तिगत निरीक्षण कर इसे गौरव प्रदान किया है।
सन 1920 में परमहंस योगानन्द जी ने पाश्चात्य जगत में क्रिया योग के प्रचार प्रसार का कार्य प्रारंभ किया । 6 अक्टूबर 1920 बोस्टन, अमेरिका में परमहंस योगानन्द जी ने धार्मिक उदार वादियों की अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि के रूप में धर्म विज्ञान विषय पर अपना प्रथम उद्बोधन दिया । सन 1925 में लॉस एंजेलिस कैलिफोर्निया में परमहंस जी ने अपने आध्यात्मिक शिष्यों के अनुदान व सहायता द्वारा 12 एकड़ की विशाल भूमि पर एक आश्रम का निर्माण किया । जो आज उनके वैश्विक कार्य के अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय के रूप में संपूर्ण विश्व में सेल्फ रिलाइजेशन फैलोशिप के नाम से प्रसिद्ध है । यह मुख्यलाय निरंतर परमहंस जी की अध्यात्मिक शिक्षाओं को विस्तारित करने व सत्य के जिज्ञासुओं को संबल प्रदान करने के लिए कर्यांवित है। वर्तमान में स्वामी चिदानंद गिरी जी योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया व सेल्फ रिलाइजेशन फैलोशिप के संघ प्रमुख व अध्यक्ष के प्रबुद्ध मार्गदर्शन व नेतृत्व में श्री श्री परमहंस योगानंद जी की आध्यात्मिक ज्ञान विरासत व आदर्शों का विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार हो रहा है।