श्री श्री परमहंस योगानन्द जी (पारिवारिक नाम मुकुंद लाल घोष) का जन्म भारतवर्ष के महान संत गोरखनाथ जी के चरण रज से पावन गोरखपुर की पवित्र धरती पर 5 जनवरी 1893 को हुआ था । विलक्षण प्रतिभा के धनी परमहंस जी के बाल्यकाल में ही उनकी आध्यात्मिक पीपासा, ईशनिष्ठा के विशेष गुणों द्वारा उनके वैश्विक अभियान का बोध होने लगा था। सन् 1915 में कोलकाता विश्वविद्यालय द्वारा स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात अपने गुरु स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरी जी द्वारा विधिवत सन्यास दीक्षा ग्रहण करने पर उनके समक्ष अपने लिए एक नये नाम को चयनित करने का प्रस्ताव रखा गया और मुकुंद लाल घोष ने अपना नया नाम योगानन्द (ईश्वर के मिलन योग द्वारा आनन्द) का चयन किया। इस प्रकार उन्हे सन्यास के उपरांत योगानन्द का नाम प्राप्त हुआ ।
“इसे याद रखो जो मनुष्य अपने सांसारिक कर्तव्यों को त्याग देता है वह अपने उस त्याग को तभी उचित सिद्ध कर सकता है जब उससे कहीं अधिक वृहद परिवार का कोई उत्तरदायित्व स्वीकार करता है।”